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योगेश्वर श्याम से ………
जहाँ प्रेम की संपूर्ण संस्थित संकल्पना हों तुम
जहाँ साधना तुम प्रेम की अतुल आराधना हों तुम
विश्व कल्पित कल्पतरु की कंचित कल्पना हों तुम
जहाँ प्रेम की सकल सुन्दर शोभित स्थापना हों तुम
तुम जहाँ अब भी खड़े गिरिराज प्रेम धारण किये
मित्र सुदामा चरण पखारन प्रेमअश्रु तुम जहाँ किये
जहाँ पवन पावन चिरप्रवाहित नव प्रेम परिभाष लिए
कूल कदम्ब खड़े जड से जहाँ चेतन प्रेम की आस लिए
जहाँ सूर सुन्दर डूब गए मीरा दीवानी जीत गयी
बरसाने की घटा निराली बरसा प्रीत वो जीत गयी
जहाँ उध्दव कुंठित ज्ञान व्यथित योग की हर्षित हार हुई
अनपढ अज्ञानी सब सखी सयानी प्रेम को वर्णित जीत गयी
जहाँ हार गए सब प्रेम पुलकित अरुण शुभ संसार में
हुई प्रकाशित मध्ययुध जहाँ गीता जीवन के सार में
हे माधव भयभीत पार्थ आज क्यू सर लक्षित धरा किये
द्वंद चरम पे मन दुर्बल और नयन प्रतीक्षित तुम्हे किये
वहां प्रेम पूछे आज वर्ण इस नश्वर संसार में
जहाँ हाट बिके कोमल मन आज अर्थ प्रसार में
श्याम पधारो उससे पहले कि अब प्रेम खड़ा बाज़ार में
प्रेम की बोली लग न जाये इस कुत्सित व्यापार में
…. विनय सक्सेना
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