रिमझिम फुहार
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नव वर्ष २०१५
शाख नयी बात नयी
जीवन की हर गात नयी
कर्मयोग का साथ लिए
रे पथिक तू साधक सा
चलता चल तू इक राह नयी
जीवन सार समझ ले इतना
मानव धरम से रिश्ता कितना
वक्त बिताया जो अब तक तूने
उसमे इंसानों सा जिया है कितना
ये द्वेष इरशा मन के भेद
अपने करम में इतने छेद
किसका क्या तू ले पाया
इसी भरम में समय गंवाया?
जो बाँट रहा उसको तो तू भूल गया
तू आप आप ही खुद रसूल हुआ
जो खोया तूने वो तू अपना समझ रहा
और जो अपना वो फ़िज़ूल हुआ ?
छोड़ पुरानी ये सोच दीवानी
खुद को दे इक नयी रवानी
जीवन के इस कोलाहल में
छेड नयी इक धुन मस्तानी
….विनय सक्सेना
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