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गुलशन….

रिमझिम फुहार
रिमझिम फुहार
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गुलशन

 

दरख्त तमाम मुन्तजिर है इस राहें गुलशन में

इक संग-राह भी नज़र है मगर इसी गुलशन में

 

खवाब रौशन रंगी खूब-गुल यहीं इस गुलशन में

हकीकत कांटो सी जवां मगर इसी गुलशन में

 

अंदाज-इ-बयां ऐसा कि इबादत हों जैसे

तंज ऐसे कि हरे ज़ख्म हों इसी गुलशन में

 

कुई था कभी सर-इ-शाम यहीं बैठा मेरे पहलूँ में

आज इक फूल सा महका मगर इसी गुलशन में

 

विनय सक्सेना

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