रिमझिम फुहार
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मीरा–सीता और वो
मीरा जैसी बाते कर के
मुझको श्याम बना देती है
अधरों पर मुस्कान लिए वो
मुझको निष्काम बना देती है
वो बरस हज़ार वन में रह कर
बस मुस्काती रहती है
अग्निशिखा आलिंगित कर
मुझको राम बना देती है
मै क्या दू उसको उससे पहले
वो सब आसान बना देती है
अक्सर अंधियारी रातो को वो
मुझको चाँद बना देती है
उसकी बाते उसकी यादे
बस वो ही जाने वो ही माने
मुझको बस इतना मालूम वो
घर को हरि धाम बना देती है….
…विनय सक्सेना
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